Tuesday, 16 October 2012

श्री दुर्गा चालीसा | दुर्गा माँ आरती


नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ।। 
निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ।। 
शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।। 
रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ।। 
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ।। 
अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ।। 
प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ।। 
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रहृ विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ।। 
रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ।। 
धरा रुप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भई फाड़कर खम्बा ।। 
रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।। 
लक्ष्मी रुप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ।। 
क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ।। 
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ।। 
मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ।। 
श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ।। 
केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ।। 
कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ।। 
सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ।। 
नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ।। 
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ।। 
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ।। 
रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ।। 
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ।। 
अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ।। 
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ।। 
प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ।। 
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताको छुटि जाई ।। 
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ।। 
शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ।। 
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ।। 
शक्ति रुप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछतायो ।। 
शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ।। 
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ।। 
मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ।। 
आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ।। 
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ।। 
करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ।। 
जब लगि जियौं दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ।। 
दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ।। 
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।। 

दुर्गा माँ आरती |  Maa Durga Aarti

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी । तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ जय अम्बे गौरी ॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को । उज्जवल से दो‌उ नैना, चन्द्रबदन नीको ॥ जय अम्बे गौरी ॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै । रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजै ॥ जय अम्बे गौरी ॥
केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्परधारी । सुर नर मुनिजन सेवक, तिनके दुखहारी ॥ जय अम्बे गौरी ॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती । कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति ॥ जय अम्बे गौरी ॥
शुम्भ निशुम्भ विडारे, महिषासुर घाती । धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ जय अम्बे गौरी ॥
चण्ड मुण्ड संघारे, शोणित बीज हरे । मधुकैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे ॥ जय अम्बे गौरी ॥
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी । आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ जय अम्बे गौरी ॥
चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरुं । बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु ॥ जय अम्बे गौरी ॥
तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता । भक्‍तन् की दुःख हरता, सुख-सम्पत्ति करता ॥ जय अम्बे गौरी ॥
भुजा चार अति शोभित, खड़ग खप्परधारी । मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ जय अम्बे गौरी ॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती । श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति ॥ जय अम्बे गौरी ॥
श्री अम्बे जी की आरती, जो को‌ई नर गावै ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ॥ जय अम्बे गौरी ॥

जय माँ वैष्णो देवीsultanpur ki khabar -Welcome to Sultanpur sultanpur ki khabar -Welcome to Sultanpur

Monday, 15 October 2012

जय माँ वैष्णो देवी

विष्णु जी कि आज्ञा पाकर मुनिवर जी ने माँ लक्ष्मी माँ सरस्वती और माँ अम्बे का आवाहन किया और तीनो शक्तियो ने मिलकर अपनी शक्ति से एक नई शक्ति उत्पन कि और फिर माँ ने मुनिवर जी आज्ञा पाकर भगवान् विष्णु जी के पास गई और विष्णु जी ने अपना अंश प्रदान करके माँ को शेरावाली वैष्णो देवी का नाम दिया और काहा जाओ पाप का नाश करके पुण्य का प्रकाश फैलाओ ....और फिर माँ शेरावाली ने दैत्य राज का संहार किया ओर उसके बाद विष्णु जी ने काहा माँ को अब तुम दक्षिण दिशा की ओर जाओ और राजा रत्नाकर की पुत्री के रूप में जन्म लेकर धर्म की ध्वजा फैलाओ ....